भारतीय जनता पार्टी ने 20 प्रमुख घोषणाएं दी और 5 साल बाद ही एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो गई। कांग्रेस की हार के 11 प्रमुख वजह दिख रही है, जिस कारण प्रदेश की जनता ने कांग्रेस का हाथ छोड़, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कमल खिलाया।
1. काँग्रेस अपने अहंकारी व्यहार और अतिउत्साहीत हार की वजह रही है
2. टिकट वितरण में गुटबाजी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने इस बार सर्वे के आधार पर कुल 22 विधायकों की टिकट काट दी थी। टिकट वितरण में जमकर गुटबाजी भी नजर आई। गुटबाजी इस बात की भी कि अपने पसंदीदा प्रत्याशी को टिकट दिलाने से कहीं ज्यादा फोकस दूसरे गुट के पंसदीदा प्रत्याशियों की टिकट काटने पर रहा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जगदलपुर की सीट है।
2. मंत्रियों की समीक्षा न करना
9 मंत्रियों का चुनाव हारना, यह बताता है कि मंत्रियों के कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं थी। विधायकों के कामकाज का रिव्यू तो पार्टी ने किया लेकिन मंत्रियों के कामकाज का रिव्यू नहीं हो पाया। मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी रही और पार्टी उनके साथ खड़ी नजर आई। इसके चलते सारे मंत्रियों को टिकट देना कांग्रेस के खिलाफ गया।
जातिगत जनगणना के वादे को भी बहुसंख्य समाज ने स्वीकार नहीं किया। इससे समाज में एक तरह का वर्गीकरण होता और भेदभाव बढ़ने की आशंका थी। फिर भ्रष्टाचार के मामले में ED और IT की कार्रवाई होती रही। उससे भी भूपेश सरकार को नुकसान होने की बात सामने आ रही है।
3. सत्ता का केन्द्रीकरण
5 साल में विधायकों को बिल्कुल छूट नहीं मिली। ढाई-ढाई साल की राजनीति के चलते विधायकों के 2 गुट भी नजर आए। इस गुटबाजी का असर यह भी रहा कि एक गुट के विधायकों की सुना जाना बिल्कुल बंद हो गया। वहीं दूसरे गुट के विधायकों को ज्यादा वैल्यू दी गई।
4. कर्ज माफी पर ज्यादा बात
छत्तीसगढ़ में 2018 में कर्ज माफी की घोषणा कांग्रेस के लिए गेमचेंजर साबित हुई थी। 2023 में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी ने किसानों से ये वादा किया और जगह-जगह इसका जिक्र करते रहे। कांग्रेस की इस घोषणा से बाकी वर्ग काफी नाराज दिखा। अन्य वर्गों को लगता रहा कि सरकार ने उनके लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं की।
5. पीएससी विवाद पर कोई बड़ा एक्शन न लेना
चुनाव से ठीक पहले PSC परीक्षा में हुए घोटाले को कांग्रेस सरकार ने बहुत हल्के में लिया। कई शिकायतों के बाद भी कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया गया। हर साल PSC की परीक्षा लगभग 6 लाख अभ्यर्थी देते हैं। यह विवाद केवल 6 लाख अभ्यर्थियों तक नहीं बल्कि उनसे जुड़े उनके परिवार तक पहुंचा। इसे बीजेपी ने भी उठाया और कार्रवाई के वादे को अपने घोषणा पत्र में भी शामिल किया।
6. पीएम आवास में हुई चूक
प्रधानमंत्री आवास योजना में केंद्र पर आरोप लगाकर कांग्रेस ने इसे मुद्दे को पलटने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकी। लोगों में यह बात घर कर गई कि गरीबों को आवास देने के मामले में कांग्रेस सरकार से चूक हो गई। इसकी गंभीरता को समझने में भी शायद कांग्रेस के रणनीतिकार सफल नहीं हो पाए।
7. बिरनपुर हिंसा का असर
बिरनपुर हिंसा के बाद मारे गए युवक भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को टिकट देना सबसे अहम और निर्णायक फैसला था। ईश्वर ने न केवल रविंद्र चौबे जैसे दिग्गज मंत्री को हरा दिया, बल्कि इसका असर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी देखने को मिला। साहू समाज के लोगों का दूसरे क्षेत्रों में भी समर्थन मिला।
8. महतारी वंदन ही गेमचेंजर
सबसे महत्वपूर्ण वादा भाजपा का महतारी वंदन योजना रहा। महिलाओं को हर साल 12 हजार रुपए देने का वादा। फिर प्रत्याशियों की ओर से अपने-अपने क्षेत्र में महतारी वंदन योजना का फार्म भरवाने का जो दांव चला वह निर्णायक साबित हुआ। महिलाओं में यह संदेश गया कि भाजपा महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए देगी। अगर किसी घर में तीन महिलाएं हैं तो उनको तीन हजार रुपए महीने मिलेंगे।
इस वादे को समझने और उसका काउंटर करने में भूपेश सरकार ने देर कर दी। हालांकि भूपेश ने बाद में घोषणा की थी कि महिलाओं को 15 हजार दिए जाएंगे। लेकिन तब तक भाजपा का दांव घर-घर में काम कर चुका था।
9. मुद्दों को समझ नहीं पाए
छत्तीसगढ़ में लॉ एंड ऑर्डर की जो स्थिति ख़राब हुई थी उसकी शिकायत सीएम हाउस से लेकर हर मंच तक हुई। पार्टी इसको समझ नहीं पाई, जो समझे वो भी इसे या नजरअंदाज कर गए या इस पर कुछ कर न सके। कई कार्यकर्ता जो विपक्ष में रहते हुए पार्टी के लिए खड़े रहे सरकार में आने के बाद अनदेखी से नाराज हुए।
कांग्रेस पार्टी ने 2018 में कुल 36 वादे किए थे। प्रमुख वादों में शराबबंदी और नियमितीकरण का वादा शामिल था। जहां शराबबंदी का वादा केवल समिति की गठन तक सीमित रहा तो वहीं अनियमित कर्मचारी नियमितीकरण की राह ही तकते रह गए।
10. बागियों की बगावत की अनदेखी
कांग्रेस पार्टी में टिकट वितरण से पहले ही संभावित दावेदारों को लेकर ही बगावत देखने को मिल रही थी। इसके बावजूद बागियों को साथ रखने के लिए कांग्रेस ने कोई खास कोशिश नहीं की। अजीत कुकरेजा, अनूप नाग, गोरेलाल बर्मन जैसे बागियों को कांग्रेस पार्टी ने बड़े ही हल्के में लिया।