आज 1 जुलाई शनिवार को शनि प्रदोष व्रत वाले दिन से अमरनाथ यात्रा का शुभारंभ हो रहा है. अमरनाथ यात्रा का पहला जत्था 30 जून शुक्रवार को रवाना हुआ था. वे लोग आज शनि प्रदोष के दिन बाबा बर्फानी के दर्शन करेंगे. इस साल अमरनाथ यात्रा का समापन 31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के दिन होगा. हर साल लोग जम्मू-कश्मीर में हिमालय पर स्थित अमरनाथ की पवित्र गुफा में बनने वाले हिम शिवलिंग का दर्शन करने जाते हैं. बाबा बर्फानी के दर्शन से जीवन धन्य हो जाता है और दुख दूर होते हैं. शिव कृपा से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. मन में सवाल आता है कि अमरनाथ यात्रा का महत्व क्या है? हर साल लोग बाबा बर्फानी के दर्शन करने क्यों जाते हैं? इन सवालों का जवाब जानने के लिए सबसे पहले बाबा अमरनाथ की कथा के बारे में जानना होगा.
अमर कथा सुनाने से पहले शिवजी ने त्याग दी ये वस्तुएं
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाने के लिए अमरनाथ गुफा में पहुंचे तो उससे पहले उन्होंने नंदी, वासुकी, चंद्रमा, गणेश जी और पंचतत्वों का त्याग कर दिया था. वे चाहते थे कि जब अमरत्व की कथा पार्वती जी सुनें तो कोई और वहां न हो.
जब आप अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं तो जहां पर शिवजी ने जिसका त्याग किया, उस नाम से आज भी स्थान है. पहलगाम में नंदी, चंदनवाड़ी में चंद्रमा, शेषनाग झील पर वासुकी नाग, महागुनस पर्वत पर गणेश जी और पंचतरणी में पंचतत्वों का त्याग शिव जी ने किया था.
अमरनाथ की कथा
शिवपुराण की कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने शिव जी से पूछा कि आपका न तो आदि है और न अंत, आप अजर और अमर हैं. लेकिन हमेशा उनको ही जन्म लेकर कठोर परीक्षा क्यों देनी पड़ती है? पति के रुप में पाने के लिए कठोर तप करना पड़ता है. आपके अमरत्व का रहस्य क्या है? भगवान शिव इसके बारे में नहीं बताना चाहते थे, लेकिन माता पार्वती के हठ के आगे वे विवश हो गए. तब उन्होंने माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाने का निर्णय लिया. इसके लिए उन्होंने एक शांत स्थान चुना और माता पार्वती को लेकर उस गुफा में पहुंच गए.
भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुनानी प्रारंभ की. माता पार्वती कथा के बीच-बीच में हुंकार भरती थीं, ताकि शिवजी को लगे कि वे सुन रही हैं. कुछ समय बाद माता पार्वती सो गईं. वहां पर एक शुक का बच्चा था, वह भी उस कथा को सुन रहा था. माता पार्वती के सोने के बाद वह बीच बीच में हुंकार भरने लगा. कुछ देर बाद शिव जी को पता चल गया कि देवी गौरी सो गई हैं. फिर उन्होंने सोचा कि कथा कौन सुन रहा था? वे शुक को वहां देखकर क्रोधित हो गए और मारने के लिए त्रिशूल से प्रहार कर दिया.
शुक तीनों लोकों में भागता रहा और अंत में वेद व्यास जी के आश्रम में सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख से होते हुए पेट में समा गया. वह 12 वर्ष तक उनके गर्भ में रहा. भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन पर वह बाहर निकले और व्यास पुत्र शुकदेव कहलाए. गर्भ में ही उन्हें उपनिषद, वेद, पुराण आदि का ज्ञान हो गया था.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि कथा के बीच में दो कबूतर हुंकार भर रहे थे, जब शिवजी को इसका पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए. उन दोनों ने महादेव से क्षमा प्रार्थना की. तब भगवान भोलेनाथ ने कहा कि तुम दोनों यहां पर शिव-शक्ति के प्रतीक रूप में वास करोगे. लोक मान्यता है कि आज भी अमरनाथ की गुफा में वे दोनों कबूतर दिखाई देते हैं.
भगवान शिव ने उस गुफा में अमरत्व कथा सुनाई थी, इसलिए उसे अमरनाथ गुफा कहते हैं. हर साल उस गुफा में बर्फ का शिवलिंग बनता है. इस वजह से लोग बाबा बर्फानी के दर्शन करने जाते हैं.