सवाल यह है कि प्लास्टिक के ये टुकड़े आते कहां से हैं? प्लास्टिक अपशिस्ट, जो इधर-उधर बिखरा पड़ा होता है वह समय के साथ और धूप के कारण छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाता है, फिर और छोटे टुकड़े होते हैं और अंत में पाउडर जैसा हो जाता है। यह हल्का होता है, इसलिए हवा के साथ दूर तक फैलता है और अंत में खाद्य-चक्र का हिस्सा बन जाता है। यह हवा में मिलकर श्वांस के साथ फेफड़े तक भी पहुंच जाता है। प्लास्टिक के छोटे टुकड़ों को माइक्रो-प्लास्टिक कहा जाता है, जबकि बहुत छोटे टुकड़े जो आँखों से नहीं दिखाते हैं, वे नैनो-प्लास्टिक हैं। यही नैनो-प्लास्टिक सारी समस्या की जड़ हैं और ये अब पूरी दुनिया की हवा और पानी तक पहुँच चुके हैं। यही खाद्य पदार्थों में, पानी में और हवा में फैल गए हैं। अब इनसे मुक्त न तो हवा है, न ही पानी और ना ही खाने का कोई सामान।
हाल में ही पलोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार महासागरों में तैरने वाले प्लास्टिक के टुकडों की संख्या 170 खराब से भी अधिक है और इनका सम्मिलित वजन 20 लाख टन से भी अधिक है। इस अध्ययन के अनुसार इस समय महासागरों को प्लास्टिक-मुक्त करने के लिए किनारों की सफाई पर जोर दिया जा रहा है, पर यह बेकार की कवायद है क्योंकि जब तक वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक का उत्पादन कम नहीं किया जाएगा तबतक या समस्या ऐसे ही विकराल रहेगी।