कोबाड गांधी के बारे में सारी जानकारियां आसानी से उपलब्ध थीं, उनके सीपीआई (एमएल) से जुड़ाव, नक्सली आंदोलन में हिस्सेदारी आदि को लेकर लिखा जाता रहा है। इसके बावजूद उनकी किताब को इस साहित्यिक पुरस्कार के लिए चुना गया। इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार के सूचना विभाग ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि भाषा मंत्री केसरकर ने कोबाड गांधी को पुरस्कार जीतने पर बधाई दी है।
लेकिन फिर भी मौजूदा शिंदे सरकार इस सबके लिए पूर्व की उद्धव ठाकरे सरकार को दोषी ठहरा रही है। लेकिन इस बार मराठी सोशल मीडिया इस मामले में शिंदे सरकार की आलोचना कर रहा है। वहां कहा जा रहा है कि भले ही कोबाड गांधी की किताब का चयन महाविकास अघाड़ी सरकार ने किया था, लेकिन पुरस्कार देने का अंतिम फैसला तो शिंदे सरकार ने ही किया, और ऐसे में शिंदे सरकार की ही जिम्मेदारी थी कि पुरस्कारों का ऐलान करने से पहले लेखकों के बारे में सारी जानकारी जुटाए। आलोचना इस हद तक बढ़ी की न सिर्फ पुरस्कार को वापस लेने का ऐलान करन पड़ा बल्कि उस समिति को ही भंग कर दिया गया जिसने इस किताब को पुरस्कार के लिए चुना था।