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केंद्रीय बजट 2023 पर प्रतिक्रिया : गणेश कछवाहा


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 का बजट प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह अमृत काल का बजट है।दुनिया के आकाश पर भारत चमक रहा।मेरी सरकार की प्राथमिकताएं समावेशी विकास, अंतिम मील तक पहुंचना, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमता को उजागर करना, हरित विकास, युवा और वित्तीय क्षेत्र का विकास करना है।”

यह शब्द और भाव बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन बजट शब्दों से नहीं वित्तीय सच्चाईयो,तथ्यात्मकआंकड़ों , शुद्ध भावोंऔर पवित्र इच्छा शक्ति से बनते हैं। इस बजट में बहुत से अच्छे प्रावधान हैं परंतु देश की बड़ी आबादी को लाभ नहीं पहुंचाती हो तो , उनकी आशाओं और उम्मीदों को पूरी नहीं करती हो तो वह अपने औचित्य को खो देती है। यह बजट भी उसी तरह कॉरपोरेट्स और अमीर वर्गों के हितों की रक्षा तो करती है मगर आम जनता को काफी निराश करती है। इससे अमीरों और गरीबों के बीच खाई और बढ़ेगी जो देश के लिए उचित नहीं है।

देश उम्मीद कर रहा था कि बढ़ती भयावह बेरोजगारी,भीषण मंहगाई, कृषि,कालाधन,मुद्रास्फीति,भ्रष्टाचार, गरीबों के कल्याणकारी योजनाएं और नौकरी पेशा,संवैधानिक संस्थाओ को समृद्ध करने आदि के बारे में कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा पर ऐसा विशेष बजट में दिखाई नहीं दिया बल्कि बहुत अच्छे अच्छे सपनों से भरे शब्द सुनने को मिले।

समाजिक कल्याण की बहुत सी योजनाओं में कटौती की गई, मनरेगा, बेरोजगारी और मुद्रास्‍फीति का कोई उल्‍लेख नहीं है। कृषि के बुनियादी इन्फारस्ट्रकचर को समृद्ध करने और एम एस पी की गारंटी का कोई जिक्र तक नहीं है।आधी से ज्यादा आबादी गांव में बसती है लेकिन उनके लिए कुछ खास नहीं किया है। पी पी पी मॉडल के जरिए विकास की कल्पना की गई है जो काफी खतरनाक और निजीकरण को बढ़ावा देने वाली है। आयकर में नई पद्धति में सात लाख तक छूट दी गई है। पर्यावरण प्रदूषण वैश्विक समस्या होती जा रही है ,मंहगाई, पेट्रोलियम, डीजल उस पर भी यह बजट मौन है। वास्तव में यह बजट देश की सच्ची भावना को संबोधित नहीं कर रहा है।

गणेश कछवाहा
ट्रेड यूनियन काउंसिल
रायगढ़ छत्तीसगढ़