दरअसल झारखंड, बंगाल और ओडिशा में रहने वाले कुड़मी जाति के लोगों का दावा है कि 1931 तक मुंडा, मुंडारी, संथाली आदि के साथ कुड़मी भी आदिम जनजाति (प्रिमिटिव ट्राइब) की सूची में शामिल था। देश आजाद होने के बाद छह सितंबर, 1950 को जब संसद में जनजातियों की सूची प्रस्तुत की गई, तो उसमें कुड़मी नहीं था। इसका लोकसभा में उपस्थित 15 सांसदों ने विरोध किया था। कुड़मी समाज के नेताओं का कहना है कि एक साजिश के तहत इसे आदिवासी की सूची से हटाया गया।
कुड़मी जाति की परंपराओं पर शोध करने वाले प्रसेनजीत महतो काछुआर अपने एक लेख में लिखते हैं, “छोटानागपुर के पठार और इसके आस-पास के क्षेत्रों में आदि काल से रहते आए कुड़मी बिहार और दूसरे राज्यों की कुर्मी जाति से अलग हैं। कुड़मी आदिवासियों की पारम्परिक सामाजिक शासन व्यवस्था कस्टमरी लॉ से संचालित-शासित होते रहे हैं।”