यही तो है न राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का पैगाम! इसमें कोई राजनीति नहीं, किसी प्रकार से वोट बटोरने की चेष्टा नहीं। किसी एक पार्टी अथवा स्वयं के लिए कुछ प्राप्ति की लालसा नहीं। यह यात्रा तो स्वयं त्याग की है। इस यात्रा में प्रेम के माध्यम से जनता को यह होश दिलाना और जगाना है कि तुमको जिस नफरत के रास्ते पर भटका दिया गया है, वह रास्ता स्वयं तुमको बर्बाद कर रहा है। राहुल गांधी अपनी यात्रा में देश की जनता को यही तो बता रहे हैं कि देखो, नफरत की राजनीति से तुम्हारा क्या हाल हुआ। तुम्हारी नौकरियां गईं। तुम्हारे रोजगार और व्यापार ठप हुए। तुम स्वयं घाटे में रहे। इस रास्ते को त्यागो। इसकी जगह प्रेम की यात्रा से जुड़ो जो इस देश का सदियों पुराना रास्ता है और जो भारतीय सभ्यता की आत्मा है।
दिल्ली में 24 दिसंबर को राहुल गांधी ने लाल किले से यही निर्भीक संदेश दिया। वह बोले, ‘यह टीवी वाले दिन-रात हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम लगाए रहते हैं।’ फिर उन्होंने कहा कि यह देश ऐसा नहीं है। राहुल ने लाल किले से खड़े होकर जनता के सामने भारत की असली तस्वीर रख दी। वह बोले, मैं यहां से खड़ा होकर सामने मस्जिद देख रहा हूं, मेरे एक ओर मंदिर है और दूसरी ओर गुरुद्वारा है। और लाल किले के ठीक सामने चांदनी चौक की यही सच्चाई है। पास में एक ओर ऐतिहासिक ऊंची-ऊंची जामा मस्जिद की मीनारें हैं, चांदनी चौक के एक छोर पर सदियों पुराना जैन मंदिर और उसके बजते घंटों का संगीत, तो चौक के दूसरे छोर पर गुरुद्वारा और वहां से उठती वाहे गुरु की पुकार। यही तो है न भारत वर्ष, अनेकों धर्मों का संगम, विभिन्न सभ्यताओं का समागम और इन सब अनेकों विभूतियों के प्रेम से मिलकर निकलता भारतवर्ष का प्रेम का संदेश। यही तो है गौतम का भारत, कबीर, गुरु नानक और निजामुद्दीन का भारत।