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खड़गे ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को बताया तानाशाही लाने की कोशिश, कहा- BJP से छुटकारा पाना एकमात्र समाधान



कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन विचार की अतीत में तीन समितियों द्वारा व्यापक रूप से जांच की गई है और इसे खारिज कर दिया गया है। यह देखना बाकी है कि क्या चौथे का गठन पूर्व-निर्धारित परिणाम को ध्यान में रखकर किया गया है। यह हमें चकित करता है कि भारत के प्रतिष्ठित चुनाव आयोग के एक प्रतिनिधि को समिति से बाहर रखा गया है। खड़गे ने निम्न तथ्यों के साथ केंद्र की नीयत पर सवाल उठाएः

1. तथ्य यह है कि 2014-19 (लोकसभा 2019 सहित) के बीच सभी चुनाव आयोजित करने में चुनाव आयोग की लागत लगभग ₹ 5,500 करोड़ है, जो कि सरकार के बजट व्यय का केवल एक अंश है, लागत बचत के तर्क को पैसे के हिसाब से बनाता है।

2. इसी तरह, यदि आदर्श आचार संहिता समस्या है, तो इसे या तो स्थगन की अवधि को छोटा करके या चुनावी मौसम के दौरान अनुमत विकासात्मक गतिविधियों में ढील देकर बदला जा सकता है। इस संबंध में सभी राजनीतिक दल व्यापक सहमति पर पहुंच सकते हैं।

3. बीजेपी को जनादेश की अवहेलना करके चुनी हुई सरकारों को उखाड़ फेंकने की आदत है। जिससे 2014 के बाद से अकेले संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 436 उप-चुनावों की कुल संख्या में काफी वृद्धि हुई है। बीजेपी में सत्ता के लिए इस अंतर्निहित लालच ने पहले ही हमारी राजनीति को दूषित कर दिया है और दल-बदल विरोधी कानून को दंतहीन बना दिया है।



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