नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल ( NCLAT) ने विप्रो के खिलाफ इंसॉल्वेंसी संबंधी कार्रवाई शुरू करने की मांग को खारिज कर दिया है। यह याचिका कंपनी के क्रेडिटर की तरफ से दायर की गई थी। अपीलेट ट्राब्यूनल की दो सदस्यों की चेन्नई बेंच ने कहा कि विप्रो और याचिकाकर्ता के बीच भुगतान को लेकर पहले से विवाद है। ट्राब्यूनल का यह भी कहना था कि इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड, सिर्फ लेनदारों (क्रेडिटर्स) की रिकवरी में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLAT) ने NCLT के ऑर्डर को सही ठहराया है। इससे पहले, नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) ने 16 जनवरी, 2020 को ट्राइकोलाइट इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज (Tricolite Electrical Industries) की याचिका को खारिज कर दिया था। कंपनी ने यह याचिका ऑपरेशनल क्रेडिटर के तौर पर दायर की थी।
NCLT के ऑर्डर को अपीलेट इकाई NCLAT में चुनौती दी गई थी। हालांकि, NCLAT ने इस मामले में यह टिप्पणी भी की, ‘हम यह मानते हैं कि कंपनी (विप्रो) ने कुल इनवॉइस राशि का 3 पर्सेंट रोक रखा है।’ इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत, आम तौर पर किसी भी कॉरपोरेट कर्जदार के खिलाफ इंसॉल्वेंसी की प्रक्रिया सिर्फ तब स्वीकार की जा सकती है, जब दोनों पक्षों को लेकर कर्ज को लेकर वास्तव में विवाद हो। यह मामला किसी सरकार प्रोजेक्ट के लिए सामानों की सप्लाई से जुड़ा है, जिसे लागू करने की जिम्मेदारी विप्रो की थी। इस सिलसिले में विप्रो ने कुल 13.43 करोड़ का ऑर्डर दिया था।
अपील करने वाली कंपनी के मुताबिक, उसने समय पर सामानों की सप्लाई की और अलग-अलग इनवॉइस बनाए। विप्रो ने इस इनवॉइस में मौजूद रकम का 97 पर्सेंट भुगतान किया, जबकि 3 पर्सेंट का पैसा बाकी रह गया। अपील करने वाली कंपनी के मुताबिक, यह बड़ी रकम है। इस कंपनी का कहना है कि विप्रो ने इस सिलसिले में भेजी गई डिमांड नोटिस का भी जवाब नहीं दिया। हालांकि, विप्रो ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के बीच इस सिलसिले में पहले से विवाद चल रहा है और सामान सप्लाई करने वाली कंपनी के ईमेल से भी इसकी पुष्टि होती है।