जी20 की अध्यक्षता भारत को मिलना ऐसा प्रचारित किया जा रहा है, मानो यह एक अजूबा हो। जी20 का उद्देश्य है, आपसी व्यापार को और व्यापारिक हितों को बढ़ावा देना। इसके सदस्य हैं – अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, साऊथ अफ्रीका, साउथ कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। इन देशों में से सबसे धनी–अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, इटली, जर्मनी, फ्रांस और कनाडा – का एक दूसरा समूह या मनोरंजन क्लब भी है, जिसे दुनिया जी7 के नाम से जानती है।
भारत के पास अध्यक्षता आने पर तमाम शहरों में इसके विज्ञापन भी लगाए गए हैं, जिसमें “एक दुनिया, एक परिवार, और एक भविष्य” का नारा वसुधैव कुटुम्बकम के साथ लिखा है। कहीं-कहीं तो इसके विज्ञापन के साथ गांधी जी भी खड़े दिख रहे हैं। दुनिया में 190 से अधिक देश हैं और सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि इनमें से महज 20 देशों के समूह को एक विश्व और एक परिवार से कैसे जोड़ा जा सकता है? यदि जी20 एक दुनिया, एक परिवार, एक भविष्य पर सही में विश्वास रखता है तब तो इसे सबसे पहले जी20 समूह को ही ध्वस्त करना होगा।
पूरी दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद में से जी20 देशों का योगदान 90 प्रतिशत है और वैश्विक व्यापार में इसकी भागीदारी 80 प्रतिशत से भी अधिक है। इन आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि जी20 समूह जो संख्या के सन्दर्भ में दुनिया के कुल देशों का लगभग 10 प्रतिशत है, पूरे दुनिया के व्यापार और प्राकृतिक संसाधनों को पूरी तरह नियंत्रित करता है।