हांगकांग. हांगकांग (Hong Kong)में नए कानून के तहत अब निजी स्कूलों में चीन का झंडा (Chinese flag)लहराया जाएगा. साथ ही बच्चों को चीनी राष्ट्रगान गाना(China’s national anthem) होगा. विशेषज्ञों ने इस कानून को खतरनाक बताया है. उन्होंने कहा है कि इससे बच्चों में चीन के प्रति लगाव की भावना बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. अमेरिका के वॉयस ऑफ अमेरिका (वीओए) ने एक सरकारी बयान के हवाले से बताया है कि इस नई नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा (National Education) को बढ़ावा देना और छात्रों में राष्ट्रीय भावना को विकसित करना है. बयान में कहा गया है कि राष्ट्रगान से जुड़े नियम के जरिए छात्रों में चीनी लोगों के प्रति लगाव और राष्ट्र भावना को बढ़ाया जाएगा.
हांगकांग में अगले साल की शुरुआत से सभी निजी किंडरगार्डन, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों को प्रत्येक स्कूल दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित करना होगा और हफ्ते में एक बार राष्ट्रगान गाने के साथ-साथ ध्वजारोहण समारोह आयोजित करना होगा. इस साल जून महीने में राष्ट्रगान अध्यादेश के कानून के बाद इस जनादेश की घोषणा की गई थी. इस नए नियम के तहत राष्ट्रगान या ध्वज का ‘अपमान’ करने की किसी भी गतिविधि को अपराध माना जाएगा और ऐसा करने वाले को सजा मिलेगी. इसके जरिए सरकार की कोशिश उन लोगों की आवाज को दबाना है, जो चीन के अत्याचारों और मजबूत होती पकड़ का विरोध करते हैं.
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इस नई नीति का छात्र और शिक्षक दोनों ही विरोध कर रहे हैं. इनका कहना है कि वह बस खड़े रहेंगे और राष्ट्रगान नहीं गाएंगे. एक शिक्षक ने कहा, ‘राष्ट्रगान गाना उतना जरूरी नहीं है, यह बस एक परंपरा है. क्या आपको लगता है कि राष्ट्रगान गाकर छात्र चीन समर्थक बन जाएंगे?’ ऑस्ट्रेलिया की मर्डोक यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और हांगकांग की अकादमिक स्वतंत्रता पर किताब लिखने वाली जैन क्यूरी ने स्कूलों के लिए जारी हुए आदेश का विरोध किया है. उन्होंने कहा है, ‘यह नीति… उन्हें (छात्रों को) एक चीनी राष्ट्र में चीनी नागरिक बनाने की कोशिश की शुरुआत है.’
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क्यूरी ने कहा, ‘यह काफी हद तक वैसा है, जैसा दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद पूर्वी यूरोप में हुआ था. तब सोवियत संघ (Soviet Union) ने जिन देशों पर कब्जा किया था, वहां के युवाओं को कम्युनिस्ट बनाना शुरू कर दिया. यह नरम उपदेश का एक रूप है, जो बच्चों को ध्वज और राष्ट्रगान अपनाने जैसी चीजों से शुरू होता है. इसके बाद मार्क्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा.’ (एजेंसी इनपुट के साथ)
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